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बीए सेमेस्टर-3 गृहविज्ञान

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2644
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-3 गृहविज्ञान

प्रश्न- किशोरावस्था की प्रमुख समस्याओं पर प्रकाश डालिये।

अथवा
ऐसा क्यों कहा जाता है कि "किशोरावस्था समस्याओं का घर है" स्पष्ट कीजिये।

सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. किशोरावस्था की संवेगात्मक समस्याएँ।
2. किशोरावस्था में समायोजन की समस्याएँ।
3. किशोरावस्था की सामान्य व्यवहारिक समस्याएँ।
4. किशोरों में पहचान संकट।

उत्तर-

किशोरावस्था की समस्याएँ
(Problems of Adolescence)

किशोरावस्था 'समस्याओं का घर' है। इस अवस्था में समस्याएँ ही समस्याएँ हैं। किशोर न केवल अपने माता-पिता, अपने संरक्षकों, शिक्षकों एवं समाज के लोगों के लिए समस्या है, वरन् वे स्वयं में भी एक बड़ी समस्या हैं। इनकी समस्याएँ अध्ययन, स्वास्थ्य, मनोरंजन, व्यवसाय का चुनाव, नौकरी, विपरीत लिंगों के प्रति आकर्षण, प्रेम विवाह की प्रबल इच्छा आदि किसी भी चीज से संबंधित हो सकती हैं। इसीलिए किशोरावस्था को 'समस्याओं की आयु' भी कहा जाता है।

किशोर के लिए तो सबसे बड़ी समस्या यह है कि न तो उसे बालक की दृष्टि से देखा जाता है और न ही वयस्क की दृष्टि से न तो उसकी गलतियों को नजर अंदाज किया जाता है और न ही वयस्कों की भाँति उसे मान-सम्मान, इज्जत व प्यार दिया जाता है। यह स्थिति किशोर के लिए अत्यंत दुखदायी होती है। फलतः उसमें चिन्ता, उद्विग्नता, अनिश्चितता, किशोरावस्था जीवन का सबसे कठिन काल माना जाता है। इस अवस्था में बालक में अनेक प्रकार के शारीरिक और मानसिक परिवर्तन होते हैं। इसी कारण सम्भव: स्टेनली हॉल ने कहा है, “किशोरावस्था अत्यन्त दबाव, तनाव, तूफान एवं संघर्ष की अवस्था है।'

इस अवस्था में किशोर बाल्यावस्था तथा प्रौढ़ावस्था दोनों अवस्थाओं में रहता है। ब्लेयर तथा जोन्स के अनुसार, “किशोरावस्था प्रत्येक बालक के जीवनमें वह समय है जिसका आरम्भ बाल्यावस्था के अन्त में होता है तथा समाप्ति प्रौढ़ावस्था के आरम्भ में होती है।

अध्ययनों के आधार पर कहा गया है कि किशोरावस्था समस्याओं की आयु है। किशोरों की समस्याएँ परिवार, विद्यालय, मनोरंजन, भविष्य, व्यवसाय, विपरीत लिंग के लोगों आदि से सम्बन्धित हो सकती हैं। ये समस्याएँ आर्थिक, व्यक्तिगत और सामाजिक किसी भी स्तर की हो सकती है। किशोरावस्था को समस्याओं की आयु इसलिये भी कहा गया है, क्योंकि इस आयु बालक अपने माता-पिता, संरक्षकों और अध्यापकों आदि के लिये एक समस्या होता है तथा साथ ही साथ वह अपनी नई विकास अवस्था के नये रोल्स के साथ समायोजन नहीं कर पाता, उसमें चिन्ता, उत्सुकता, अनिश्चितता और भ्रांति के लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं। यह किसी न किसी रूप में उसके लिये एक समस्या ही है। किशोरावस्था बढ़ने के साथ-साथ किशोरों की समस्याएँ जटिल होती जाती हैं। यदि किशोर इन समस्याओं को बिना विशेष परेशानी के हल कर लेता है, तो उसमें आत्म-विश्वास व उपयुक्ता की भावना विकसित होती है, अन्यथा विपरीत स्थिति में वह कुंठा का शिकार हो जाता है। किशोरावस्था के अन्त तक अधिकांश समस्याएँ धन, सेक्स व शैक्षिक उपलब्धि के सम्बन्ध में ही होती हैं। किशोरियों की कुछ गम्भीर समस्याएँ व्यक्तिगत आकर्षण, पारिवारिक और सामाजिक सम्बन्धों के सम्बन्ध में होती हैं।

किशोरावस्था की मुख्य समस्यायें निम्नलिखित हैं-

(1) किशोरावस्था की संवेगात्मक समस्यायें – किशोरावस्था में बालक तथा बालिकाओं का जीवन क्षेत्र विस्तृत हो जाता है। बालक तथा बालिकायें अलग-अलग रहने लगते हैं। इस अवस्था में विपरीत लिंगीय झुकाव आरम्भ हो जाता है। वास्तव में किशोर तथा किशोरियों का एक नया जीवन आरम्भ होता है। उनको नित नये अनुभव होते हैं। इस अवस्था में अनेक व्यवहारों में परिपक्वता आ जाती है, परन्तु इस अवस्था में अनेक संवेगात्मक समस्यायें उत्पन्न हो जाती हैं।

कील तथा बुस का कथन है, “किशोरावस्था के आगमन का मुख्य चिन्ह संवेगात्मक विकास में तीव्र परिवर्तन है। "

(i) किशोरावस्था में प्रेम, क्रोध तथा सहानुभूति आदि संवेग स्थायी रूप धारण कर लेते हैं। किशोर इन संवेगों पर कोई नियन्त्रण नहीं रख पाता।

(ii) किशोरावस्था में काम प्रवृत्ति तीव्र हो जाती है। इस कारण किशोर में संवेगात्मक अस्थिरता होती है। प्रवृत्ति संवेगात्मक व्यवहार पर विशेष प्रभाव डालती है।

(iii) उन परिस्थितियों में अन्तर आ जाता है, जो संवेग उत्पन्न करती हैं।

(iv) किशोरावस्था में किशोर के समक्ष एक गम्भीर समस्या यह होती है कि उसे न तो बालक समझा जाता है और न प्रौढ़। अतः उसे वातावरण से अनुकुलन करने में कठिनाई होती हैं। किशोर प्राय: इस अनुकूलन में असफल हो जाता है। ऐसी दशा में उसे निराशा का सामना करना पड़ता है। इसमें संवेगात्मक अस्थिरता उत्पन्न हो जाती है।

(v) किशोर विभिन्न अवसरों पर एक ही परिस्थिति में अलग-अलग व्यवहार करता है। एक ही परिस्थिति में वह कभी प्रसन्न दिखलाई देता है, तो कभी उसी परिस्थिति में उदास दिखायी देता है।

(vi) जो किशोर शारीरिक रूप से अस्वस्थ होते हैं, उनमें संवेगात्मक अस्थिरता होती है।

इस कथन से स्पष्ट होता है कि किशोरावस्था में अनेक संवेगात्मक समस्यायें उत्पन्न हो जाती हैं। ये समस्यायें स्नायुमण्डल के असाधारण कार्य तथा एण्डोक्रायन ग्रन्थियों के कारण उत्पन्न होती हैं।

(2) शारीरिक विकास की समस्यायें – किशोरावस्था में अनेक शारीरिक परिवर्तन होते हैं। कुछ बालकों का शारीरिक विकास जल्दी होता है और कुछ बालकों का देर से कुछ बालक हकलाते हैं। कुछ बालकों को चश्मे की आवश्यकता होती है। इस प्रकार बालकों में किसी शारीरिक दोष के कारण उनमें हीन भावना ग्रन्थि बन जाती है।

(3) समायोजन की समस्यायें समायोजन की समस्यायें -

(1) परिवार तथा
(2) विद्यालय से सम्बन्धित होती हैं।

परिवार से सम्बन्धित समस्यायें निम्नलिखित हो सकती हैं—

(i) किशोर किसी प्रकार के बन्धन में नहीं रहना चाहता।
(ii) किशोर का दृष्टिकोण परिवार के अन्य सदस्यों के प्रति बदल जाता है।
(iii) किशोर स्वतन्त्र वातावरण चाहता है।
(iv) बालिकाओं की परिवार सम्बन्धी सभी समस्यायें और अधिक होती हैं।
(v) यदि किशोर को स्वतन्त्रता नहीं मिलती तो वह विद्रोह कर बैठता है।
(vi) किशोर परिवार के सदस्यों से झगड़ने लगता है।

विद्यालय से सम्बन्धित समस्यायें निम्नलिखित होती हैं-

(i) किशोर अपने साथियों के साथ समायोजन नहीं कर पाता।
(ii) किशोर यह चाहता है कि अन्य बालक उसका आदर-सम्मान करें।
(iii) शिक्षकों का कटु व्यवहार भी किशोरों के लिए एक समस्या बन जाता है।
(iv) प्रौढ़ व्यक्तियों का आदर्श किशोर का आदर्श होता है।

(4) काम प्रवृत्ति सम्बन्धी समस्यायें - किशोरावस्था में काम प्रवृत्ति अत्यधिक तीव्र हो जाती है। इसी कारण अनेक प्रकार की समस्यायें उत्पन्न हो जाती है। इससे किशोर को वातावरण के साथ समायोजन करने में कठिनाई होती है। यदि कहा जाये कि किशोरावस्था में काम इच्छा सबसे अधिक समस्यायें उत्पन्न करती है, तो कोई अतिशयोक्ति न होगी। किशोर की प्रथम और मुख्य समस्या 'काम' की होती है। यह अवस्था संघर्षों की अवस्था होती है। यह सबसे कठिन समय होता है। इस समय गुप्त काम-वासना फिर से जाग जाती है। काम, सम्बन्धी मुख्य समस्यायें निम्नलिखित हैं-

(i) हस्त मैथुन,
(ii) सहलिंगीय सहवास,
(iii) विपरीत लिंगीय सहवास,
(iv) अश्लील चित्र बनाना,
(v) काम सम्बन्धी चेष्टायें करना तथा
(vi) रोमांस करना।

(5) व्यावसायिक समस्यायें - किशोरावस्था में बालकों का जीवन क्षेत्र विस्तृत हो जाता है। किशोर युवक व युवतियाँ अपना समूह बना लेते हैं। शारीरिक व मानसिक परिवर्तनों के कारण वे कल्पनाशील होकर भविष्य के स्वप्न देखने लगते हैं। किशोर अपने पैरों पर खड़ा होना चाहता है। वह अपने व्यवसाय के विषय में सोचने लगता है। किशोरियाँ अपने सुखद जीवन की कल्पनायें करने लगती हैं। चूँकि किशोर अनुभवहीन होते हैं, अतः उनके समक्ष अनेक समस्यायें आ जाती हैं। कभी-कभी बालकों को निराशा का सामना करना पड़ता है। किशोर के मस्तिष्क में इसी कारण हर समय तनाव रहता है।

सभी जानते हैं कि आज का नवयुवक शारीरिक श्रम से बचना चाहता है। देश में शिक्षित नवयुवकों में बेरोजगारी फैली हुई है। देश के सामने यह समस्या है कि आज के नवयुवक किस प्रकार अपने पैरों पर खड़े हो सकें। व्यावसायिक निर्देशन व्यक्ति को व्यक्तिगत सहायता प्रदान करने का वह सशक्त साधन है, जिससे किशोर स्वयं अपने लिये उपयुक्त व्यवसाय का चुनांव करता है। बहुधा व्यावसायिक निर्देशन प्राप्त करके व्यक्ति अपने भावी व्यवसाय के सम्बन्ध में स्वयं निर्णय लेने में समर्थ हो जाता है। वह जिस व्यवसाय में प्रविष्ट होता है, उसमें वह प्रगति करता है। व्यावसायिक निर्देशन की आवश्यकता आज के युग में बहुत अधिक है, क्योंकि आधुनिक युग में रोजगार की समस्या जटिल है। आज विभिन्न प्रकार के व्यवसायों के लिये विशेष शिक्षा और प्रशिक्षण आवश्यक है।

(6) आर्थिक समस्या — किशोरावस्था में किशोर तथा किशोरियों का दैनिक व्यय बढ़ जाता है। किशोर धूम्रपान करने लगते हैं। किशोरियों को अपने फैशन के लिए धन की आवश्यकता होती है। उनको जितने धन की आवश्यकता होती है, माता-पिता द्वारा उतना धन प्रदान नहीं किया जाता है। अभिभावक उतने धन की आवश्यकता भी अनुभव नहीं करते। फलस्वरूप किशोर अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए अनुचित साधन अपनाते हैं।

(7) भावात्मक स्थिरता प्रदान करना - किशोर तथा किशोरियों को भावात्मक स्थिरता प्रदान करना भी एक समस्या होती है। निम्नलिखित उपायों से भावात्मक स्थिरता लाई जा सकती है-

(i) अभिभावकों का योगदान-परिवार में पति-पत्नी के सम्बन्ध बालक के व्यवहार को प्रभावित करते हैं। अतः माता-पिता को अपने सम्बन्ध मधुर रखने चाहियें। माता-पिता को बालक के साथ व्यवहार करते समय विशेष सावधानी रखनी चाहिये।

(ii) शिक्षक का योगदान - एक शिक्षक को ज्ञान होना चाहिए कि किस प्रकार संवेगात्मक परिवर्तन लाया जा सकता है। शिक्षकों द्वारा बालकों को उनके संवेगों पर नियन्त्रण रखना सिखाया जाना चाहिये।

(iii) रुझान – रुझान बालक के संवेगात्मक व्यवहार को प्रभावित करते हैं। ये रुझान स्वार्थ से सम्बन्ध रखते हैं। एक स्वस्थ रुझान संवेगात्मक रुझान में सहायता प्रदान करता है। रुझान के सम्बन्ध में यह स्मरण रखना चाहिये कि "सफलता के लिए आशा की रुझान सफलता प्रदान करती है, परन्तु असफलता की रुझान निराशा में वृद्धि करती है और इसी कारण असफलता मिलती है। "

(iv) मार्गान्तीकरण - जिस प्रकार मूल प्रवृत्तियों का मार्ग परिवर्तन किया जाता है, उसी प्रकार संवेगों का भी मार्गान्तरण किया जा सकता है।

(v) शोधन - संवेगों के शोधन से संवेगात्मक स्थिरता प्राप्त की जा सकती है। अतः संवेगों के दमन के स्थान पर उनका शोधन किया जाना चाहिए।

(vi) देश-प्रेम- बालकों में देश-प्रेम की भावना जाग्रत की जानी चाहिए। इसके लिए शिक्षक को बालकों को देश-प्रेम की शिक्षा देनी चाहिए। देश-प्रेम भावात्मक एकता स्थापित कर सकता है। भावात्मक एकता का अर्थ है- देश या राष्ट्र के सभी निवासियों में विचारों तथा भावनाओं की एकता।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- आहार आयोजन से आप क्या समझती हैं? आहार आयोजन का महत्व बताइए।
  2. प्रश्न- आहार आयोजन करते समय ध्यान रखने योग्य बातें बताइये।
  3. प्रश्न- आहार आयोजन को प्रभावित करने वाले विभिन्न कारकों का वर्णन कीजिए।
  4. प्रश्न- एक खिलाड़ी के लिए एक दिन के पौष्टिक तत्वों की माँग बताइए व आहार आयोजन कीजिए।
  5. प्रश्न- एक दस वर्षीय बालक के पौष्टिक तत्वों की मांग बताइए व उसके स्कूल के लिए उपयुक्त टिफिन का आहार आयोजन कीजिए।
  6. प्रश्न- "आहार आयोजन करते हुए आहार में विभिन्नता का भी ध्यान रखना चाहिए। इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
  7. प्रश्न- आहार आयोजन के सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
  8. प्रश्न- दैनिक प्रस्तावित मात्राओं के अनुसार एक किशोरी को ऊर्जा की आवश्यकता होती है।
  9. प्रश्न- सन्तुलित आहार क्या है? सन्तुलित आहार आयोजित करते समय किन-किन बातों को ध्यान में रखना चाहिए?
  10. प्रश्न- आहार द्वारा कुपोषण की दशा में प्रबन्ध कैसे करेंगी?
  11. प्रश्न- वृद्धावस्था में आहार को अति संक्षेप में समझाइए।
  12. प्रश्न- आहार में मेवों का क्या महत्व है?
  13. प्रश्न- सन्तुलित आहार से आप क्या समझती हैं? इसके उद्देश्य बताइये।
  14. प्रश्न- वर्जित आहार पर टिप्पणी लिखिए।
  15. प्रश्न- शैशवावस्था में पोषण पर एक निबन्ध लिखिए।
  16. प्रश्न- शिशु के लिए स्तनपान का क्या महत्व है?
  17. प्रश्न- शिशु के सम्पूरक आहार पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  18. प्रश्न- किन परिस्थितियों में माँ को अपना दूध बच्चे को नहीं पिलाना चाहिए?
  19. प्रश्न- फार्मूला फीडिंग आयोजन पर एक लेख लिखिए।
  20. प्रश्न- 1-5 वर्ष के बालकों के शारीरिक विकास का वर्णन करते हुए उनके लिए आवश्यक पौष्टिक आहार की विवेचना कीजिए।
  21. प्रश्न- 6 से 12 वर्ष के बालकों की शारीरिक विशेषताओं का वर्णन करते हुए उनके लिए आवश्यक पौष्टिक आहार की विवेचना कीजिए।
  22. प्रश्न- विभिन्न आयु वर्गों एवं अवस्थाओं के लिए निर्धारित आहार की मात्रा की सूचियाँ बनाइए।
  23. प्रश्न- एक किशोर लड़की के लिए पोषक तत्वों की माँग बताइए।
  24. प्रश्न- एक किशोरी का एक दिन का आहार आयोजन कीजिए तथा आहार तालिका बनाइये।
  25. प्रश्न- एक सुपोषित बच्चे के लक्षण बताइए।
  26. प्रश्न- वयस्क व्यक्तियों की पोषण सम्बन्धी आवश्यकताओं का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
  27. प्रश्न- वृद्धावस्था की प्रमुख पोषण सम्बन्धी आवश्यकताएँ कौन-कौन-सी हैं?
  28. प्रश्न- एक वृद्ध के लिए आहार योजना बनाते समय आप किन बातों को ध्यान में रखेंगी?
  29. प्रश्न- वृद्धों के लिए कौन से आहार सम्बन्धी परिवर्तन करने की आवश्यकता होती है? वृद्धावस्था के लिए एक सन्तुलित आहार तालिका बनाइए।
  30. प्रश्न- गर्भावस्था में कौन-कौन से पौष्टिक तत्व आवश्यक होते हैं? समझाइए।
  31. प्रश्न- स्तनपान कराने वाली महिला के आहार में कौन से पौष्टिक तत्वों को विशेष रूप से सम्मिलित करना चाहिए।
  32. प्रश्न- एक गर्भवती स्त्री के लिए एक दिन का आहार आयोजन करते समय आप किन किन बातों का ध्यान रखेंगी?
  33. प्रश्न- एक धात्री स्त्री का आहार आयोजन करते समय ध्यान रखने योग्य बातें बताइये।
  34. प्रश्न- मध्य बाल्यावस्था क्या है? इसकी विशेषतायें बताइये।
  35. प्रश्न- मध्य बाल्यावस्था का क्या अर्थ है? मध्यावस्था में होने वाले शारीरिक परिवर्तनों का वर्णन कीजिए।
  36. प्रश्न- शारीरिक विकास का क्या तात्पर्य है? शारीरिक विकास को प्रभावित करने वाले करकों को समझाइये।
  37. प्रश्न- क्रियात्मक विकास का क्या अर्थ है? क्रियात्मक विकास को परिभाषित कीजिए एवं मध्य बाल्यावस्था में होने वाले क्रियात्मक विकास को समझाइये।
  38. प्रश्न- क्रियात्मक कौशलों के विकास का वर्णन करते हुए शारीरिक कौशलों के विभिन्न प्रकारों का वर्णन कीजिए।
  39. प्रश्न- सामाजिक विकास से आप क्या समझते हैं? सामाजिक विकास के लिए किन मानदण्डों की आवश्यकता होती है? सामाजिक विकास की विभिन्न अवस्थाओं का वर्णन कीजिए।
  40. प्रश्न- समाजीकरण को परिभाषित कीजिए।
  41. प्रश्न- सामाजिक विकास को प्रभावित करने वाले तत्वों की विस्तारपूर्वक चर्चा कीजिए।
  42. प्रश्न- बालक के सामाजिक विकास के निर्धारकों का वर्णन कीजिए।
  43. प्रश्न- समाजीकरण से आप क्या समझती हैं? इसकी प्रक्रियाओं की व्याख्या कीजिए।
  44. प्रश्न- सामाजिक विकास से क्या तात्पर्य है? इनकी विशेषताओं का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
  45. प्रश्न- उत्तर बाल्यावस्था में सामाजिक विकास का क्या तात्पर्य है? उत्तर बाल्यावस्था की सामाजिक विकास की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  46. प्रश्न- संवेग का क्या अर्थ है? उत्तर बाल्यावस्था में संवेगात्मक विकास का वर्णन कीजिए।
  47. प्रश्न- संवेगात्मक विकास की विशेषताएँ लिखिए एवं बालकों के संवेगों का क्या महत्व है?
  48. प्रश्न- बालकों के संवेग कितने प्रकार के होते हैं? बालक तथा प्रौढों के संवेगों में अन्तर बताइये।
  49. प्रश्न- संवेगात्मक विकास को प्रभावित करने वाले कारकों का वर्णन कीजिए।
  50. प्रश्न- बच्चों के भय के क्या कारण हैं? भय के निवारण एवं नियन्त्रण के उपाय लिखिए।
  51. प्रश्न- संज्ञान का अर्थ एवं परिभाषा लिखिए। संज्ञान के तत्व एवं संज्ञान की विभिन्न अवस्थाओं का वर्णन कीजिए।
  52. प्रश्न- संज्ञानात्मक विकास से क्या तात्पर्य है? इसे प्रभावित करने वाले कारकों का वर्णन कीजिए।
  53. प्रश्न- भाषा से आप क्या समझते हैं? वाणी एवं भाषा का क्या सम्बन्ध है? मानव जीवन के लिए भाषा का क्या महत्व है?
  54. प्रश्न- भाषा- विकास की विभिन्न अवस्थाओं का विस्तार से वर्णन कीजिए।
  55. प्रश्न- भाषा-विकास से आप क्या समझती? भाषा-विकास पर प्रभाव डालने वाले कारक लिखिए।
  56. प्रश्न- बच्चों में पाये जाने वाले भाषा सम्बन्धी दोष तथा उन्हें दूर करने के उपाय बताइए।
  57. प्रश्न- भाषा से आप क्या समझती हैं? भाषा के मापदण्ड की चर्चा कीजिए।
  58. प्रश्न- भाषा से आप क्या समझती हैं? बालक के भाषा विकास के प्रमुख स्तरों की व्याख्या कीजिए।
  59. प्रश्न- भाषा के दोष के प्रकारों, कारणों एवं दूर करने के उपाय लिखिए।
  60. प्रश्न- मध्य बाल्यावस्था में भाषा विकास का वर्णन कीजिए।
  61. प्रश्न- सामाजिक बुद्धि का आशय स्पष्ट कीजिए।
  62. प्रश्न- 'सामाजीकरण की प्राथमिक प्रक्रियाएँ' पर टिप्पणी लिखिए।
  63. प्रश्न- बच्चों में भय पर टिप्पणी कीजिए।
  64. प्रश्न- बाह्य शारीरिक परिवर्तन, संवेगात्मक अवस्थाओं को समझाइए।
  65. प्रश्न- संवेगात्मक अवस्था में होने वाले परिवर्तन क्या हैं?
  66. प्रश्न- संवेगों को नियन्त्रित करने की विधियाँ बताइए।
  67. प्रश्न- क्रोध एवं ईर्ष्या में अन्तर बताइये।
  68. प्रश्न- बालकों में धनात्मक तथा ऋणात्मक संवेग पर टिप्पणी लिखिए।
  69. प्रश्न- भाषा विकास के अधिगम विकास का वर्णन कीजिए।
  70. प्रश्न- भाषा विकास के मनोभाषिक सिद्धान्त का वर्णन कीजिए।
  71. प्रश्न- बालक के हकलाने के कारणों को बताएँ।
  72. प्रश्न- भाषा विकास के निर्धारकों का वर्णन कीजिए।
  73. प्रश्न- भाषा दोष पर टिप्पणी लिखिए।
  74. प्रश्न- भाषा विकास के महत्व को समझाइये।
  75. प्रश्न- वयः सन्धि का क्या अर्थ है? वयः सन्धि अवस्था में होने वाले शारीरिक परिवर्तनों का वर्णन कीजिए।
  76. प्रश्न- निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखिए - (a) वयःसन्धि में लड़के लड़कियों में यौन सम्बन्धी परिपक्वता (b) वयःसन्धि में लैंगिक क्रिया-कलाप (e) वयःसन्धि में नशीले पदार्थों का उपयोग एवं दुरूपयोग (d) वय: सन्धि में आहार सम्बन्धी आवश्यकताएँ।
  77. प्रश्न- यौन संचारित रोग किसे कहते हैं? भारत के प्रमुख यौन संचारित रोग कौन-कौन से हैं? वर्णन कीजिए।
  78. प्रश्न- एच. आई. वी. वायरस क्या है? इससे होने वाला रोग, कारण, लक्षण एवं बचाव बताइये।
  79. प्रश्न- ड्रग और एल्कोहल एब्यूज डिसआर्डर क्या है? विस्तार से समझाइये।
  80. प्रश्न- किशोर गर्भावस्था क्या है? किशोर गर्भावस्था के कारण, लक्षण, किशोर गर्भावस्था से बचने के उपाय बताइये।
  81. प्रश्न- युवाओं में नशीले पदार्थ के सेवन की समस्या क्यों बढ़ रही है? इस आदत को कैसे रोका जा सकता है?
  82. प्रश्न- किशोरावस्था में संज्ञानात्मक विकास, भाषा विकास एवं नैतिक विकास का वर्णन कीजिए।
  83. प्रश्न- सृजनात्मकता का क्या अर्थ है? सृजनात्मकता की परिभाषा लिखिए। किशोरावस्था में सृजनात्मक विकास कैसे होता है? समझाइये।
  84. प्रश्न- किशोरावस्था की परिभाषा देते हुये उसकी अवस्थाएँ लिखिए।
  85. प्रश्न- किशोरावस्था की विशेषताओं को विस्तार से समझाइये।
  86. प्रश्न- किशोरावस्था में यौन शिक्षा पर एक निबन्ध लिखिये।
  87. प्रश्न- किशोरावस्था की प्रमुख समस्याओं पर प्रकाश डालिये।
  88. प्रश्न- किशोरावस्था क्या है? किशोरावस्था में विकास के लक्षण स्पष्ट कीजिए।
  89. प्रश्न- किशोरावस्था को तनाव या तूफान की अवस्था क्यों कहा गया है?
  90. प्रश्न- प्रारम्भिक वयस्कावस्था में 'आत्म प्रेम' (Auto Emoticism ) को स्पष्ट कीजिए।
  91. प्रश्न- किशोरावस्था से क्या आशय है?
  92. प्रश्न- किशोरावस्था में परिवर्तन से सम्बन्धित सिद्धान्त कौन से हैं?
  93. प्रश्न- किशोरावस्था की प्रमुख सामाजिक समस्याएँ लिखिए।
  94. प्रश्न- आत्म की मुख्य विशेषताएँ लिखिए।
  95. प्रश्न- शारीरिक छवि की परिभाषा लिखिए।
  96. प्रश्न- प्राथमिक सेक्स की विशेषताएँ लिखिए।
  97. प्रश्न- किशोरावस्था के बौद्धिक विकास पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  98. प्रश्न- सृजनात्मकता और बुद्धि में क्या सम्बन्ध है?
  99. प्रश्न- प्रौढ़ावस्था से आप क्या समझते हैं? प्रौढ़ावस्था में विकासात्मक कार्यों का वर्णन कीजिए।
  100. प्रश्न- प्रारंभिक वयस्कावस्था के मानसिक लक्षणों पर प्रकाश डालिये।
  101. प्रश्न- वैवाहिक समायोजन से क्या तात्पर्य है? विवाह के पश्चात् स्त्री एवं पुरुष को कौन-कौन से मुख्य समायोजन करने पड़ते हैं?
  102. प्रश्न- प्रारंभिक वयस्कतावस्था में सामाजिक विकास की विवेचना कीजिए।
  103. प्रश्न- उत्तर व्यस्कावस्था में कौन-कौन से परिवर्तन होते हैं तथा इन परिवर्तनों के परिणामस्वरूप कौन-कौन सी रुकावटें आती हैं?
  104. प्रश्न- वृद्धावस्था से क्या आशय है? संक्षेप में लिखिए।
  105. प्रश्न- वृद्धावस्था में संज्ञानात्मक सामर्थ्य एवं बौद्धिक पक्ष पर प्रकाश डालिए।
  106. प्रश्न- पूर्व प्रौढ़ावस्था की प्रमुख विशेषताओं के बारे में लिखिये।
  107. प्रश्न- युवा प्रौढ़ावस्था शब्द को परिभाषित कीजिए। माता-पिता के रूप में युवा प्रौढ़ों के उत्तरदायित्वों का वर्णन कीजिए।
  108. प्रश्न- वृद्धावस्था में रचनात्मक समायोजन पर टिप्पणी लिखिए?
  109. प्रश्न- उत्तर वयस्कावस्था (50-60 वर्ष) में हृदय रोग की समस्याओं का विवेचन कीजिए।
  110. प्रश्न- वृद्धावस्था में समायोजन को प्रभावित करने वाले कारकों को विस्तार से समझाइए।
  111. प्रश्न- उत्तर-वयस्कावस्था में स्वास्थ्य पर टिप्पणी लिखिए।

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